जाति के निर्धारण का आधार
भारत के संविधान ने जाति के आधार पर भेदभाव से बचने के लिए कई कदम उठाए हैं। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि जन्म के आधार पर जाति तय होती है और शादी से जाती नहीं बदल सकती। यह निर्णय समाज में जाति प्रथा की जड़ें और समाज द्वारा इसे कैसे देखा जाता है, इस पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है।
शादी के बाद जाति में परिवर्तन
कोर्ट ने यह भी अनुशंसा की है कि किसी व्यक्ति की जाति, जिसके आधार पर अनेक सामाजिक और कानूनी अधिकार निर्धारित होते हैं, उसे विवाह के द्वारा प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए। इस निर्णय ने शादी के बाद जाति के बदलने की परंपरा को चुनौती दी है और यह निश्चित किया है कि जाति निर्णय का अधिकार केवल व्यक्ति के जन्म पर निर्भर करता है।
समाज में परिवर्तन की आवश्यकता
इस फैसले के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि जातिवाद को समाप्त करने के लिए हमें समाज में बदलाव लाने की आवश्यकता है। जाति आधारित भेदभाव को खत्म करने के लिए यह जरुरी है कि हम शैक्षणिक और सामाजिक स्तर पर जागरूकता बढ़ाएं। इस दिशा में उठाए गए कदम, अंततः एक समरस समाज का निर्माण करेंगे।